ये जो हरा रंग है,
बस उसी की फिराक में लाल होकर डोलता हूँ।
धूप को कांधे पर टांग कर...
अपनी अंगरखी की फटी जेब में पूरी दुनिया की बेचारगी ठूसकर...
पगरखी से धरती की ऊपरी नकली परत को लगातार घिसते-घिसते...
एक दिन मेरा समूचा घिस जाना ये तुम्हारा भ्रम है।
असल में यही नियति कर्म है जो मुझे ज़िंदा रखता है।
मेरे थैले में बहुत लंबी यात्रा से पायी एक बहुत भयानक चीज़ है।
माने...
मेरे पास कुछ है जो आँखें बंद करके हर किसी को देने लायक नहीं है।
जिस दिन मुझे उसका असली पात्र मिला,
मैं उसे वो सब-कुछ देकर ठीक अगले क्षण ही...विदा ले लूंगा।
मैं हारकर विदा होता हूँ ये मत सोचना कभी....
हार में तो मैं हमेशा 'रहा' हूँ। चाहे आप मेरी हर 'हार' को उलट कर देख लें।
मेरे लिए विदाई सम्मोहक है,
वो रुलाती है मगर अगली बार हंसने का भाना भी देती है।
विदाई इसलिए भी क्योंकि,
नेपथ्य में बस कोलाहल है, कोई मुकम्मल आवाज़ नहीं है मेरे लिए....!!!
#वहां_से_लौटते_हुए।
6 मार्च,2017
जोधपुर।
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