Saturday 30 December 2017

बंजारे गाते रहेंगे तुम सुन सको तो सुनना

            


दिन भर ज़िन्दगी की धूणी तापते-तापते बंजारे शाम होने से पहले फिर से अपने पेट को लाल अंगोछिये से कसके बांधकर निकल पड़ते है क्योंकि उन्हें पता है रात भर रेत के फिसलने की आवाजों को सुनना सबसे दर्दनाक होता है। उन्हें आज भी यही लगता है कि अँधेरे से भी ज्यादा डरावनी लगती है भूखे पेट की धंसी हुई अँधेरी-खोखली आँखें। जिसमें दुनिया की सबसे जहरीली वेदना छटपटा रही होती है।

इसलिए वो रात में बच्चों को सुनाई जाने वाली लोरी को
बस्ती के तमाम नुक्कड़ों से गुजरते हुए ऊँचे आलापों में गा देते है। लोग समझते है कि वो अपना सौदा बेचने को पुकार रहे है पर हकीकत में वो अपने दड़बे की खुशामदी के लिए आकुल कंठों से कोई प्रार्थना कर रहे होते है। 

क्या तुमने कभी अपने भीतरी कानों से सुनी है उनके गाने के आरोह-अवरोहों के बीच सप्तक से बहुत ऊपर को उठती हुई कोई राग-रागिनी..?? 

अगर नहीं, तो तुमने बहुत कुछ गंवा दिया है जो इस धरती पर सुनने लायक मौलिक और प्राकृत था। 

#बंजारे_गाते_रहेंगे_सुन_सको_तो_सुनना

Friday 29 December 2017

क्या हमारा दिमाग धोखेबाज है ???

कुछ सवाल होते है जिनके उत्तर खोजते हुए लगता है जैसे जादू खोज रहे है. जादू?? असल में ये जादू भी होता कहाँ है? उत्तर साफ़ है। हमारी आँखों में, हमारे दिमाग में। जब दिमाग और आँखें दोनों एक ही चीज़ को एक ही तरीके से देखने लग जाए तो वो सब जादू सरीखा ही लगता है।  कुछ दिन पहले कुछ ऐसा ही देखा और महसूस किया। मैं बचपन से सोचता रहा कि इस दुनिया में इतने सारे लोग है और सब अलग-अलग सोचते, समझते और देखते है तो क्या कभी ऐसा भी होता है कि दो लोग एक जैसा ही काम करे और उनके काम का प्री-वर्क भी एक सरीखा ही हो?? 

प्री-वर्क माने काम से पूर्व, काम हो जाने का आभास, यह एक भ्रान्ति होती है लेकिन असल में ये काम करने की सुनियोजितता को परखने का भी तरीका है। मैं जूझता रहा, मुझे उत्तर नहीं मिला था। उस दिन शायद मैं अपने उत्तर के बहुत करीब पहुँच गया था। जब मैंने Legend DreamWorks और  Tanuj Vyas की बनायी एक शॉर्ट फिल्म देखी। जिसका नाम है थिंक पॉवर।  #Think_Power में उन्होंने अपने रचनात्मक तरीके से इसी सवाल का उत्तर देने की बखूबी जायज़ कोशिश की है।

फिल्म का दृश्य समझाते तनुज व्यास 


क्या-क्या है इस फिल्म में- 

लगभग बीस मिनट की इस शॉर्ट फिल्म में बहुत कुछ है जो नया है या नए के समकक्ष है। हमारा दिमाग बहुत ताकतवर है, वो हमसे कुछ भी करवा सकता है। इसलिए इस शरीर में दिमाग के साथ-साथ दिल भी दिया है ताकि सोच और संवेदना का सही ताना बाना बना रहे और हम आदमी बने हुए इस समाज की व्यवस्था में सुलझते-उलझते रहे। दिमाग और दिल में संतुलन कैसे बनाया जा सकता है? यह जवाब फिल्म में अँधेरे में जुगनूं सा चमकता साफ़-साफ़ नज़र आता है। तमाम घटनाओं को सरसता से पार करते हुए यह फिल्म अपने अंत में एक और सवाल दाग देती है, जो अपने आप में बहुत बड़ा है कि हमारा दिमाग हमें कैसे धोखा दे सकता है। इस शॉर्ट फिल्म में कई किरदारों में से दो किरदारों ने मुझे व्यक्तिगत रूप से आकृष्ट किया है। पहला नेमीचंद माकड़ का और दूसरा अफ़ज़ल का किरदार। अफ़ज़ल के पास स्क्रीन टाइम और डायलॉग कम होने के बावजूद बेहतरीन परफॉर्मेंस दी है। 

थिंक पॉवर की ऑन स्क्रीन टीम 
                     
                              आप भी इस फिल्म को यू-ट्यूब के इस लिंक पर देख सकते है।
https://youtu.be/ToKOvQ_CdVgथिंक पॉवर शॉर्ट फिल्म