Monday 27 February 2017

वो मोरचंग की धुनों सरीखी मीठी-तीखी धुनें सुनाता रहा और मैं लहराता रहा।

कल शाम बेहद खास बन गयी थी बहुत लंबी अवधि के बाद तुम्हें बड़ी आत्मीयता से सुना था और उसी की बदौलत रात देर तलक मैं अपने आप से बतियाता रहा कि कोई दिन तो होगा जब #फटी_जेब_से_एक_दिन कुछ कामयाब लम्हे निकाल कर अपनी भीतरी तपन को ठंडक दूंगा लेकिन कब....??? और मैं व्याकुल हो जाता हूँ......फिर चित्त में तुम धीरे-धीरे उतरने लगते हो और जून महीने की निदाघ तपती दुपहरी में भी अपने आप को कैसे आर्द्र किया जा सकता है ये सब बतलाते हो।

मैं तुम्हारी हर बात सच मानता हूँ मेरे प्रिय लेखक क्योंकि जानता हूँ कि ये सब तुम्हारा अपना भोगा हुआ यथार्थ है। अक्सर लोग फटी जेब से निकले उन कामयाब लम्हों को अपने हाथ चिकने कर, अपने शौक-मौज में लगा देते है या बर्बाद कर देते है पर मैं जानता हूँ कि तुमने मेरे प्रिय लेखक कभी ऐसा नहीं किया शायद इसी वजह से मैं तुमसे इतना ज्यादा प्रभावित हुआ हूँ। करते भी कैसे....?? ये लम्हे तुमने कोई अनायास और बिना प्रयास के ही प्राप्त नहीं कर लिए......तुम खूब लड़े, तपे और गलाया अपने आप को......तब कहीं जाकर तुमने कुछ प्राप्त किया होगा। तुम इनका इस्तेमाल चाहे जैसे कर सकते थे पर तुम्हें यही उचित लगा कि बस फकीरी में ही आनंद है खैर आनंद प्राप्त करने के अपने अपने मानदंड होते है कोई फकीरी से करता है तो कोई विलासिता से करता होगा।
एक बात कहूँ मेरे खास लेखक, कभी कभी कुछ लोग तुम पर हंसते है, नानाविध फब्तियां कसते है, जानता हूँ तुम्हे कोई फर्क नहीं पड़ता उनका पर मुझे वे लोग विचलित कर देते है।  तुम्हारे एकांत गीतों को वे एक अलग नजरिये से क्यों देखते है पता नहीं....?? क्या उन्हें वो पीड़ा नजर नहीं आती जो मुझे महसूस होती है...??? क्या वे तुम्हारी आँखों और चेहरे पर वो सब भाव तैरते हुए नहीं देख पाते जो मैं देख लेता हूँ..???
मैं उन लोगों से कहूंगा #इस_आदमी_को_सुनों जो कहता है कि प्रेम एक कभी न अंत होने वाली प्रार्थना है। जो कहता है हारी हुई परिस्थितियों में भी जिंदगी को #अंगूठा बताकर फिर से खड़ा हुआ जा सकता है।  ......बाकी समय भले ही ये शख्श चुप रहे लेकिन ये वहां अनायास वाचाल हो उठता है #जहाँ_आदमी_चुप_है। 
इस व्यक्तित्व को बड़े गहरे से सुनों तुम्हें कुछ खास सुनाई देगा जो सहजता से बहुत कम सुनने को मिलता है। एक बात और कहूँ, इस कवि को कभी कान से मत सुनना सब साफ़-साफ़ नहीं सुनाई देता है इसे आँखे बंद करके एक मिनट में बहत्तर बार धड़कने वाले अपने भीतरी लाल वाले कान से सुनना, तुम्हें बहुत कुछ सुनाई देगा।
जैसे -

"तुम जिस आषाढ़ को
छोड़ गई थी
वही लिए बैठा हूँ,
आओ तो
वह बरसे !!"

फोटो साभार - सवाई सिंह जी शेखावत और ईश मधु जी के एल्बम से।

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