क्या करे इस देश का युवा...??? जिन्दगी की ये कैसी परीक्षा ले रहे है नौकरी देने वाले ??
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लगभग साढ़े बारह बजे का समय हो रहा था। वो मेरे पास आया.....इस बार उसके चेहरे पर क्या भाव थे मेरी समझ से बाहर थे। वो मेरे पास आया उससे पहले मैंने देखा उसके चेहरे पर ये क्या था...?? पूरे चेहरे को पढने के बाद महज एक अनुस्वार ही नज़र आया।
मैंने कुछ रूखे अंदाज़ में ही पूछा था - एग्जाम कैसा हुआ??
और वो फूट पड़ा। उसकी मुखाकृति विकृत होते-होते उस अनुस्वार से एक बहुत बड़े वृत्त में तब्दील हो गयी, उस वृत्त में सारी व्यवस्थाओं का थूक नज़र आ रहा था जो अब बहुत ही मैला और दुर्गंधमय हो चुका है। उसमें ऐसी दुर्गन्ध आ रही थी कि मेरे लिए उसके पास बैठना तक कठिन हो रहा था मगर असल में ये गंध सब ओर थी, बस हम उसकी दुर्गन्ध को महसूस करके भी उसे साफ़ नहीं कर पा रहे है।
मैंने उसकी आँखों की तरफ देखा पर उसमें आँसू का एक भी कतरा नहीं था, होगा भी कहाँ से??? पिछले कुछ महीनों में वो उनको बहुत अच्छे से सुखा चुका था। कुछ ही महीने हुए थे वो शहर में आया था एक तृतीय श्रेणी सरकारी परीक्षा की तैयारी करने, जब वो पहली बार मिला था तब बहुत उत्साहित था। एक बार की बातचीत में ही उसने कई बार बताया था कि इस बार उसकी सरकारी नौकरी लग जायेगी, बहुत मेहनत कर रहा है, रात दिन एक कर दिए है।
लेकिन आज इसको क्या हुआ??? ये विकृतियाँ कैसी है इसके चेहरे पर.......किसके प्रति है...??? उसके चेहरे पर महज दो हड्डियाँ उभरी हुई है और आँखें काफी सूजी हुई सी जान पड़ती है।
उसने रोते-रोते ही हिलते हुए स्वर में बताया सब बोल रहे है, "पेपर आउट हो गया है या तो कई महीनों बाद वापिस होगा या फिर निरस्त कर दिया जाएगा...." ( और उसका चेहरा फिर एक भयंकर अनुस्वार बन गया....)
मैंने देखा था आज ही सुबह उस कुल्फी जम जाने वाली भयंकर ठण्ड में कई चेहरे धूजते-धूजते बहुत तेजी से कोहरे में स्पष्ट हो रहे थे और मिट रहे थे। उनके चेहरों पर कौतुहल था। उनमें से कई ऐसे भी थे जो अपने खेत की फसल के बर्बाद हो जाने के बाद भी एक फैसला लेकर शहर आये थे, उस उम्मीद को सच करने के लिए जो उनके पिता या माँ ने देखी थी। कई ऐसे भी थे जिनके घर वालों ने उनकी बहन की शादी इस बार निरस्त की थी, कई ऐसे भी थे जिनको अपनी शादी करवानी है और उसके लिए सरकारी नौकरी आवश्यक शर्त के रूप में घरवालों ने रखी है, कई चेहरे वो भी थे जिन्होंने 10,000/- की बड़ी रकम अपनी जिंदगी में पहली बार अपने हाथों में पकड़ कर ट्युसन सेण्टर के मालिक को सौंपी थी। कुछ ऐसे थे जो बस घर से कुछ देर के लिए दूर जाना चाहते थे। पर उनके सपनों का हुआ क्या...?? उनकी उम्मीदों को ये कैसा धुँआ लगा...???
मेरे पास कोई जवाब उसको देने के लिए नहीं था। क्योंकि मैं सुन रहा था सुबह सात बजे से कि आज का पेपर व्हाट्स एप की सवारी करके घूम रहा था। वो महज व्हाट्स एप का कंटेंट नहीं था कई लोगों के लिए यमराज था जो व्हाट्स एप जैसे भैंसे पर चढ़कर घूम रहा था। क्या असर करेगा वो...?? हे! भगवान् मेरे युवाओं को सदबुद्धि देना....उनमें सद्भाव और आशावाद भरना।
कला साहित्य और संस्कृति के साथ-साथ कुछ बातें जो मुझमे ख़ामोशी बुनती है और लिखने को प्रेरित करती है उन्हें यहाँ लिखता हूँ.
Sunday, 24 January 2016
क्या करे इस देश का युवा...??? जिन्दगी की ये कैसी परीक्षा ले रहे है नौकरी देने वाले ??
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