अपना वतन छोड़कर जाते हुए लोगों के पैरों से कैसी संगीत ध्वनि आती होगी....?? कितना दुःख होगा जो उनके पांवों की धूल संग उड़कर मातम और मौत के चित्र बनाता होगा....!
क्या इससे भयानक और कोई संगीत या चित्र हो सकता है.....??? अपनी जमीन से उखड़े हुए लोग कैसे जीते होंगे....?? उनके आंसू कितने खारे होंगे..??? उनका चेहरा कितना उदास और उतरा हुआ होगा...?? जब उन्हें अपने वतन की याद आती होगी तो क्या और कैसे बर्ताव करते होंगे....??
दुनिया की तमाम लेखनियां थककर चूर हो जायेगी इनके दर्द को लिखते-लिखते.....लेकिन इनका दर्द है कि हर बार नए सिरे से उभरेगा, हर बार किसी और जगह और अंग में उभरेगा...!!
कितना कुछ याद आता होगा जो वे कूच करते समय छोड़कर कभी वापिस मिल जाने की एक अदनी और महीन सी प्रार्थना और दुआ के हवाले करके काली तिरपाल के नीचे ढककर चल दिए थे....ये सब कुछ दर्द का दरिया ही बनाते है...जहाँ वे खुद ही डूब जाते है....किसी तिनके तक का सहारा नहीं मिलता....।