Wednesday, 24 August 2016

अशोक गहलोत की कविता "ख्वाबों की मौत"

अशोक गहलोत साहित्य के उन विद्यार्थियों में से है जो महज परीक्षा पास करने के लिए नहीं पढ़ते है वो साहित्य में रूचि रखने वालों में से एक है। यही नहीं वो अपनी एक राय हर तरह की कविता और कहानी पर रखते है। इतिहास और व्यवहार शास्त्र में भी गहरी रूचि होने के कारण उनकी कविताओं में सिर्फ बड़बोलापन नहीं है बल्कि वो तटस्थ रहकर अपनी कविता में विचार का एक बीज भी रखते है। यहाँ मैं उनकी एक कविता रख रहा हूँ। आप भी पढ़कर  राय दीजियेगा।

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"ख्वाबों की मौत "

ख्वाबों की तहों को खोलकर छत पर रख दिया है ,
थोड़े सूख जाएंगे,
हल्के और मुलायम हो जाएंगे,
गीले ख्वाब ।

कही भाप बन उड़ तो नहीं जाएंगे,
या परिन्दा पंजों में पकड़ ले तो नहीं जाएंगे।

नहीं नहीं ...............!

सभी के ख्वाब सूख रहे छतों पर ,
बिल्कुल ताजा है कुछ कन्या भ्रूण -से ,
कुछ है मैले कुचैले - से रद्दी और बासी ,
बेटों की चाह-से,बेकार ख्वाब ,
ढेरों ख्वाब , ख्वाबों के ढेर ।

तभी गरीब की रोटी का ख्वाब
बनकर भाप उड़ गया ,
सभी ख्वाब हँसते है ताली बजाकर ,
और किसी ख्वाब को ले गया लठैत
गिरवी बताकर ।

किसी ख्वाब को बिठा पीठपर
ले गया है  बगुला भगत,
पटक दूर चट्टान पर
नोचकर खायेगा अब ।
सभी ख्वाब उठ गये इसी तरह
बारी बारी से।

अकेला मेरा ख्वाब बचा है ,
पड़ा है बेतरतीब धूप में,
और सूखे कोर फड़फड़ाते है
घायल परिन्दे-से ,
फिर तोड़ते है दम ।

अरे !   ये क्या ?........

बिलकुल अभी गिद्ध आया है आसमान में,
तेज निगाहों से देखता है नीचे ,

मै दौङता हूँ समेटने ख्वाबों को
गिर पङता हूँ फिसलकर ,
फिर उठता हूँ ..............मगर !!!!!
गिद्ध अब वहाँ नहीं है,
ख्वाब भी नहीं है,
माँस के टुकड़ें है और खून की चंद बून्दे है ,
ये ख्वाबों की मौत है ।
                     - अशोक गहलोत

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